रात काफ़ी हो चुकी थी और निशान्त का फ़ोन भी नहीं लग रहा था। इतनी तेज़ बारिश थी और शाम से ही घर में अँधेरा था। अब मुझेचिंता होने लगी थी। मैं बार बार खिड़की के बाहर देख रही थी और उसके घर आने का इंतज़ार कर रही थी। तभी दरवाज़े पे किसी कीआवाज़ आयी।
मैंने निशान्त को आते नहीं देखा इसलिए सोच में पड़ गयी की इतने रात को कौन हो सकता है। मोमबत्ती हाथ में लिए, अंधेरे कमरे में, डरते हुए मैंने दरवाज़ा खोला।
मैं स्तब्द रह गयी। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। इतने समय बाद आज अचानक वो मेरे सामने था।
“वरुण?”
वो मुस्कुराते हुए दरवाज़े के पास आया। मैं देखते रह गयी। वही मुस्कान, वही चश्मा, वही बाल, वही पुराना बैग और उसने क़मीज़ भीवही पहनी थी जो मुझे सबसे ज़्यादा पसंद था।
वो एक क़दम आगे आके बोला, “अब यहीं खड़ी रहोगी या अंदर भी आने दोगी?”
मैं तब भी खड़ी रही और वो मेरे हाथ से मोमबत्ती लेकर अंदर आ गया। दरवाज़ा भी उसिने बंद किया और बड़े आराम से एक कुर्सी लेकरबैठ गया।
मैं उसे देखते रह गयी। शादी के बाद हम कभी नहीं मिले। वो अचानक ही ग़ायब हो गया था। पर मैं उसे कभी भूल नहीं पायी। रात दिनबस उसी के बारे में सोचती थी। साथ बिताए पलों को याद करती थी। उसके साथ ही जीती थी मेरे सपनो की दुनिया में। आज अचानकउसे सामने देख मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था।
वो पूरे घर में टहल रहा था। पहले बाल्कनी फिर बेडरूम और फिर रसोई से एक बॉटल ठंडा पानी लेकर पिया। उसे देखकर कोई नहींबोलेगा की ये पहली बार यहाँ आया है। पानी का बॉटल रखते हुए उसने मुझे पूछा, “तुम कहाँ खो गयी हो?”
हाँ, मैं सचमुच खो गयी थी। हम दोनो के बीच कितना प्यार था। पर हमारे परिवारवालों को ये नहीं दिखा और ना ही हमारी शादी होने दी।ज़बरदस्ती मेरी शादी निशान्त से करवा दी। पर मैं इस शादी को नहीं मानती, ना तो मैं उससे बात करती हूँ और ना ही उसके साथ सोतीहूँ। मैं पूरा दिन अपने कमरे में रहती हूँ और वरुण के बारे में सोचती रहती हूँ।
मेरी आँखों में देखते हुए उसने पूछा, “क्या हुआ?”
“तुम कहाँ चले गए थे वरुण? मैंने तुम्हें बहोत याद किया।”
“मुझे पता है। तभी तो मैं आया हूँ मिलने।”
“क्या तुम्हें पता है मैं तुम्हें कितना याद करती हूँ, तुम्हारे ख़यालों में ही रहती हूँ। तुम्हारे पसंद का खाना बनाती हूँ, तुम्हारे पसंद के गानेसुनती हूँ, तुम्हारा दिया हुआ किताब आज भी पढ़ती हूँ। मैं हँसती हूँ तो सिर्फ़ तुम्हारे बारे में सोच कर। सुबह उठकर सबसे पहले तुम्हारेतस्वीर को देखती हूँ।
तभी एक गाड़ी की हॉर्न बजी और मैं डर गयी। मैं भाग कर खिड़की की और गयी। पर देखी की वो मेरे पति की नहीं किसी और की गाड़ीथी।
मैंने डर के वरुण को बोला, “ये सही समय नहीं है मिलने का। निशान्त कभी भी घर आ सकता है।”
“तुम चिंता मत करो, उसके आने के पहले मैं चला जाऊँगा।”
“तुम इतने यक़ीन के साथ कैसे बोल सकते हो?”
उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी और खींचा और बोला, “मैं सिर्फ़ तुमसे मिलने आया हूँ। तुम्हारे बिना मैंने जीना छोड़ दिया है। मैं कबकामर चुका हूँ।”
मैं ख़ुद को रोक नहीं पायी और उसे गले लगा लिया। कुछ देर के लिए मैं सब भूल गयी। उसने मुझे सम्भाला और फिर बाल्कनी की औरजाने लगा। मैं भागते हुए पीछे गयी, “उधर मत जाओ, कोई तुम्हें देख लेगा।”
मुझे अब डर लगने लगा था। मैं उसे अपने कमरे में ले गयी और तुरंत सब परदे गिरा दिए। उसे देखा तो वो आराम से बिस्तर पे बैठा था।वो हमेशा से ही ऐसा ही था और मैं बिलकुल उसके विपरीत।
मैंने ग़ुस्से से पूछा, “क्यूँ आए हो तुम यहाँ?”
“तुम इतना घबरायी हुई क्यूँ हो? चिंता मत करो, किसिको पता भी नहीं चलेगा मैं यहाँ आया था।” उसने आँख मारते हुए इशारे से मुझेबैठने को कहा।
मैं ग़ुस्से से उससे दूर जाकर बैठ गयी।
"तो तुम्हारी शादीशुदा जिंदगी कैसे चल रही है? तुम्हारा पति कैसा है? आशा है कि सब कुछ ठीक है।"
मैंने ग़ुस्से से उसकी तरफ़ देखा।
“मुझे पता है शादी को अभी महीना भी नहीं हुआ है। तुम्हें और वक़्त चाहिए होगा। पर तुमने अपना हनीमून क्यूँ रद्द कर दिया?”
“मेरा मन नहीं था जाने का।”
वह मेरे पास बैठकर धीरे से कहा, "ऐसा मत करो। मुझे यकीन है कि वह तुम्हें प्यार करता है।"
"लेकिन मैं उससे प्यार नहीं करती और वो भी ये जानता है।”
"सुनो," उसने मेरे आँसू पोंछते हुए कहा, "वह तुम्हारा पति है। आगे का जीवन तुम्हें साथ बिताना है।”
"मैं नहीं कर सकती, मैं अब भी तुम्हारे सपने देखती हूँ। मैं तुम्हारे बारे में सोचना बंद नहीं कर सकती। जब मैं घर पे अकेली होती हूँ मुझेलगता है कि तुम मेरे पास ही हो, मुझसे बातें कर रहे हो, मेरे साथ खाना खा रहे हो, मेरे साथ हँस रहे हो।”
"निशांत एक अच्छा इंसान है, वह मेरा ख्याल रखता है। मुझे ख़ुश रखना चाहता है। लेकिन सच तो ये है की मैं तुमसे प्यार करती हूँ।”
उसने अचानक मुझे रोका और कहा, "नहीं, वास्तव में, हम एक साथ नहीं हैं। हमारे परिवार के वजह से हम शादी नहीं कर पाए। पर अबतुम्हें मुझे भूलना पड़ेगा।”
मैंने उसे अविश्वास के साथ देखा।
एक गहरी सांस लेते हुए उसने कहा, “मैं अब कभी भी तुमसे नहीं मिलूँगा।”
मैं रोते हुए पूछी, “ऐसा क्यूँ बोल रहे हो तुम?”
उसने मेरे आँसू पोछते हुए मुझे गले से लगाया और मैंने रोते हुए बोला, “मुझे छोड़ के मत जाओ। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।”
“मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। पर ये हम आख़िरी बार मिल रहे है। इसके बाद तुम मुझे कभी देख नहीं पाओगी।”
बहोत ही अजीब सा महसूस कर रही थी मैं। कुछ भी सोच नहीं पा रही थी। वो मेरे क़रीब आया, मुझे प्यार करने लगा पर मैं बिलकुलस्तब्द थी। वो मुझे धूँदला सा दिख रहा था। मैंने कसके अपनी आँखे बंद कर ली।
अचानक मेरी आँख खुली तो मैंने सुना दरवाज़े का बेल बज रहा था। मैं बहोत डर गयी। कमरे में मैं अकेली थी। वरुण नहीं था। मैं उसेढूँढते हुए दूसरे कमरे में भागी, वो वहाँ भी नहीं था। उधर दरवाज़े की घंटी लगातार बज रही थी। मैंने वरुण को सबजगह धुंडा पर वो कहींनहीं दिखा।
हार मानकर मैं दरवाज़ा खोलने गयी।
“तुम गहरी नींद में थी लगता है। माफ़ करना तुम्हें परेशान किया।” इतना बोलकर निशान्त अपने कमरे में चला गया।
मैं सोच में पड़ गयी की ये सब क्या हो रहा है। वरुण अचानक कहाँ चला गया। वो कब गया, मैंने दरवाज़ा कब बंद किया, कुछ भी यादनहीं आ रहा था।
मैंने उसे फ़ोन लगाया पर उसने नहीं उठाया। मुझे किसी भी तरह से उसी वक़्त वरुण से बात करनी थी। समझ नहीं आ रहा था क्याकरूँ।
फिर याद आया शायद उसके सोशल मीडिया प्रोफ़ायल से कुछ मिल जाए। शादी के बाद ग़ुस्से से मैंने उसे सब जगह ब्लाक कर दियाथा। इसलिए इतने दिनो से उसकी कोई ख़बर भी नहीं मिल रही थी।
जब मैंने उसका प्रोफ़ायल देखा तो मैं आस्हचर्यचकित रह गयी। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था। ऐसे कैसे हो सकता है।
फिर नीचे कामेंट्स में उसके भाई का नम्बर मिला। मैंने बिना कुछ सोचे तुरंत उनको फ़ोन लगाया।
“हेलो, मैं विधि बोल रही हूँ। क्या वरुण से बात हो सकती है?”
विधि तुमने बहुत देर कर दी। वरुण हम सबको छोड़ कर चला गया है।”
मेरे कान सन्न हो गए ये सुनकर। मैंने डर कर पूछा, “कब? कैसे?”
“दस दिन पहले एक सड़क दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी।”
इतना सुनते ही मैं काँपने लगी और ज़मीन पे गिर गयी। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था मैंने क्या सुना।
मैं भागकर कमरे में गयी, बिस्तर बिलकुल व्यवस्थित था, परदे भी खुले थे। मुझे याद है मैंने परदे खिंचकर नीचे गिराया था।
वहाँ से भागकर मैं रसोईघर गयी, वहाँ पानी का बॉटल भी नहीं था जिससे उसने पानी पिया था। बाहर कमरे में मोमबत्ती भी नहीं दिख रहाथा।
ये कैसे संभव है? क्या ये सिर्फ एक कल्पना थी? क्या मैं उसके बारे में बहुत ज्यादा सोच रही हूं या वो वास्तव में मुझे बस एक आखिरीबार मिलने आया था?
मैंने आइने में ख़ुद को देखा और सब याद आने लगा। उसने ऐसा क्यूँ बोला था, “तुम्हारे बिना मैं कबका मर चुका हूँ।”
“मुझे पता है तुम मेरे पास आए थे। तुम कहीं नहीं गए हो। यहीं हो। मैं तुमसे बहोत प्यार करती हूँ। लौट आओ मेरे पास।”