बाबा
बाबा के लिए लिखने जाऊँ तो शब्द कम पर जाते है
बचपन लौट आता है मेरा, आँख भर आते है
छोटे छोटे हाथो ने कि है ना जाने कितनी शरारते
डाँट कभी भी पड़ी नहीं, बाबा सदा मुस्कुराते
शांत स्वभाव ठंडा दिमाग़ सहनशीलता के देवता
कितनी भी कठिन परिस्थिति हो चेहरे पे कभी नहीं दिखता
गणित हो या संगीत हो सब मे रुचि उन्होंने दिखाया
चाई बनाने का सही तारिक भी बाबा ने ही मुझको सिखाया
डगमगाती साइकल के पीछे भागते हुए उन्होंने मेरा डर भगाया
अपने निराले तरीक़े से हर पल मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया
समय के पाबंद है वो समय की क़दर करते है
धूप या बारिश में भी हर काम समय पे करते है
शाम को पूजा करके शंख मैं बजाती थी
फिर देर तक हार्मोनीयम पे संगीत का रियाज़ करती थी
बाबा को मेरा गाना पसंद था वो मेरे साथ गुनगुनाते थे
कभी कभी ख़ुश होने पे वो गाना भी संग गा लेते थे
रिज़ल्ट अच्छा हो या बुरा बाबा मिठाई ज़रूर लाते थे
माँ के डाँट से बचाते थे और माँ को भी माना लेते थे
ना जाने क्यूँ मैं निकल पड़ी पूरा करने सपनो को
रो पड़ती हूँ अकेले में याद करने अपनो को
जीवन के हर निर्णय को ख़ुद लेने का हौसला दिया
पढ़ाई हो या शादी हो मेरे हर ज़िद को पूरा किया
विदाई के वक़्त सबसे पहले बाबा ही रो पड़े
उनको देख के मेरे आँखों से आँसू ख़ुद ही निकल पड़े
आज भी रोती हूँ मैं छुपके जब भी बाबा की याद आती है
क्यूँ मैं इतनी दूर हूँ उनसे सोच के ख़ामोशी छा जाती है
काश मैं कभी बड़ी ना होती ना जाती उनसे दूर
काश जीवन की कोई रीत ना होती ना होती मैं मजबूर
बाबा के लिए लिखने जाऊँ तो शब्द कम पर जाते है
बचपन लौट आता है मेरा, आँख भर आते है
छोटे छोटे हाथो ने कि है ना जाने कितनी शरारते
डाँट कभी भी पड़ी नहीं, बाबा सदा मुस्कुराते
शांत स्वभाव ठंडा दिमाग़ सहनशीलता के देवता
कितनी भी कठिन परिस्थिति हो चेहरे पे कभी नहीं दिखता
गणित हो या संगीत हो सब मे रुचि उन्होंने दिखाया
चाई बनाने का सही तारिक भी बाबा ने ही मुझको सिखाया
डगमगाती साइकल के पीछे भागते हुए उन्होंने मेरा डर भगाया
अपने निराले तरीक़े से हर पल मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया
समय के पाबंद है वो समय की क़दर करते है
धूप या बारिश में भी हर काम समय पे करते है
शाम को पूजा करके शंख मैं बजाती थी
फिर देर तक हार्मोनीयम पे संगीत का रियाज़ करती थी
बाबा को मेरा गाना पसंद था वो मेरे साथ गुनगुनाते थे
कभी कभी ख़ुश होने पे वो गाना भी संग गा लेते थे
रिज़ल्ट अच्छा हो या बुरा बाबा मिठाई ज़रूर लाते थे
माँ के डाँट से बचाते थे और माँ को भी माना लेते थे
ना जाने क्यूँ मैं निकल पड़ी पूरा करने सपनो को
रो पड़ती हूँ अकेले में याद करने अपनो को
जीवन के हर निर्णय को ख़ुद लेने का हौसला दिया
पढ़ाई हो या शादी हो मेरे हर ज़िद को पूरा किया
विदाई के वक़्त सबसे पहले बाबा ही रो पड़े
उनको देख के मेरे आँखों से आँसू ख़ुद ही निकल पड़े
आज भी रोती हूँ मैं छुपके जब भी बाबा की याद आती है
क्यूँ मैं इतनी दूर हूँ उनसे सोच के ख़ामोशी छा जाती है
काश मैं कभी बड़ी ना होती ना जाती उनसे दूर
काश जीवन की कोई रीत ना होती ना होती मैं मजबूर