अनसुनी मेरी हर बात है
कश्मकश भरी हालात है
तेरे बिन ओ साथिया
जागते फिर क्यूँ जज़्बात है?
हटती नहीं नज़र तुमसे
कटता नहीं ये पल मुझसे
तू नहीं है सामने
प्रीत फिर भी क्यूँ है तुमसे?
नज़रें ढूंढ़ती है चेहरा तेरा
छीन लिया जो तूने चैन मेरा
तू ना आएगा इस पल
इंतज़ार फिर क्यूँ है तेरा?
सूख गयी स्याही क़लम की
ख़ामोश पन्ने भी उदास है
तू कहीं भी तो नहीं है
फिर क्यूँ तेरे होने का एहसास है?
आज मीठी सी धूप खिली है
ख़ुशी की लहर छा रही है
शायद तुमने भी याद किया मुझे
आहट तुम्हारे आने की हो रही है
आहट तुम्हारे आने की हो रही है
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