उसने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था की वो एक दिन शिक्षिका बन जाएगी। बचपन से ही शांत स्वभाब, सहमी सी रहनेवाली , खेल खेल में भी कभी शिक्षिका की भूमिका निभाने को नहीं मिला जिसे! दरवाज़े पे दस्तक होते ही डर जाए, घर पे कोई आए तो भाग के अंदर चली जाए, कोई कुछ पूछे तो माँ के पल्लू में छिप जाए।
ऐसी थी मेरी प्यारी दीदी अपने बचपन में। और आज जब मैं उसे एक सफल और लोकप्रिय शिक्षिका के रूप में देखती हूँ तो मुझे विश्वास ही नहीं होता है। मेरी दीदी मेरी और मेरे पूरे परिवार की सबसे प्रिय शिक्षिका है।
हमने उसे हर कठिन परिस्थिति से उभरते देखा है, हमने एक शिक्षिका को बनते देखा है। सच तो ये है की उसके परिश्रम को देखने के बाद ये एहसास हुआ की हमारे अध्यापक हमारे लिए कितना मेहनत करते है। हमारे सफलता का चिंता जितना हमारे माता-पिता को होती है उतना ही अध्यापक को भी होती है।
देर रात तक वो अकेली ही बैठ के अपने छात्रों के किताब जाँचती है। रोज़ सुबह सबसे पहले उठकर घर का सब काम कर बिलकुल समय पे विद्यालय पोहोच जाती है। घर आके वापिस अपने छात्रों के किताबों में खो जाती है। इन सब से समय निकाल के अपने बच्चे के पढ़ाई का भी पूरा ध्यान रखती है।
स्वभाव से वो बहोत भावुक भी है। जब उसके छात्र बड़े कक्षा में उन्नत होते है तो वो भावुक हो उठती है। किसी छात्र के अपने हाथो से बनाए हुए कार्ड से भी बहोत ख़ुश हो जाती है। जब छात्रों के अभिभावक उसकी प्रसंग्शा करते है तो उसकी चेहरे की ख़ुशी देखने लायक होती है। छात्रों के सफलता से सबसे ज़्यादा ख़ुशी उसे ही होती है।
क्यूँकि मैंने एक शिक्षिका को बनते देखा है इसलिए मुझे पता है की जितनी मेहनत एक छात्र करता है, उतनी ही मेहनत उसके अध्यापक भी करते है। मेरा अनुरोध है सबसे, जब भी मौक़ा मिले अपने अध्यापक को याद करके उनको धन्यवाद ज़रूर कहे। हम जो कुछ भी है उनकी मेहनत और लगन की वजह से ही है। ऐसे सभी अध्यापकों को आज मेरा शत शत नमन।
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